मैंने मोहन और उसके सहकर्मी को रंगे हाथों पकड़ लिया था मेरे दिमाग में अब सिर्फ यही चल रहा था कि क्या मोहन मेरे साथ अपनी जिंदगी को बिता पाएंगे या नहीं मैं इसी कशमकश में थी और कई दिनों तक मोहन और मेरे बीच बात नहीं हुई।
इसी बीच मेरे दिमाग में जो शक पैदा हुआ था वह और भी ज्यादा बढ़ने लगा, ना तो मोहन ने मुझसे इस बारे में बात की और ना ही मैंने मोहन से इस बारे में कुछ और बात की। एक दिन मोहन अपने ऑफिस से लौटे और वह बहुत ज्यादा गुस्से में थे उन्होंने मुझे कहा कि तुम काम कभी अच्छे से करती ही नहीं हो।
मैंने मोहन को कहा मोहन क्या हुआ तो मोहन मुझे कहने लगे कि तुम्हें मालूम था कि मेरी फाइल बहुत ही ज्यादा जरूरी है लेकिन उसके बावजूद भी तुमने मुझे इस बारे में नहीं बताया। मैंने मोहन को कहा मोहन तुमने मुझसे इस बारे में तो कुछ भी नहीं कहा था मोहन मुझे कहने लगे कि यह सब तुम्हारी ही वजह से हुआ है।
मैंने मोहन को कहा मोहन देखो यदि तुम्हारी कुछ और समस्या है तो उसके बारे में मैं नहीं जानती लेकिन कुछ दिनों से मैं देख रही हूं कि तुम्हारा बर्ताव मेरे प्रति बिल्कुल भी ठीक नहीं है और ना चाहते हुए भी मेरे मुंह पर वह बात आ ही गई। मैंने मोहन को कहा तुम सिर्फ ऑफिस में रंगरेलियां मनाते हो मोहन इस बात से आग बबूला हो गये और उन्होंने मुझे कहा कि तुमसे तो बात करना ही बेवकूफी है। मोहन तिलमिलाते हुए कमरे की तरफ गए और वह बेड पर बैठे हुए थे लेकिन मैं चाहती थी
कि मोहन से इस बारे में बात करूं। मैंने भी सामान पैक किया और मैं अपने मायके चली गई अचानक से जब मैं मायके पहुंची तो मां भी इस बात से थोड़ा चिंतित जरूर थी लेकिन मां ने मुझसे कुछ नहीं पूछा। मां मुझे कहने लगी कि आशा बेटा तुमने मुझे इस बारे में कुछ बताया ही नहीं मैंने मां से कहा मां बस ऐसे ही आप लोगों से मिलने का मन था तो सोचा आपसे मिल लूं।
मैंने मां को इस बारे में कुछ बताया नहीं था और ना ही मैं उन्हें इस बारे में कुछ बताना चाहती थी मैं रूम में बिस्तर पर लेटी हुई थी और मैं सिर्फ यही सोच रही थी कि मैंने मोहन की जिंदगी में ऐसी क्या कमी की जिससे कि मोहन को किसी और का सहारा लेना पड़ा। मेरे दिमाग में ना चाहते हुए भी ना जाने कौन-कौन से ख्याल आने लगे और तभी मेरी फोन की घंटी बज उठी मैंने अपने मोबाइल फोन को जब देखा तो उसमें मोहन का कॉल मुझे आ रहा था।
मोहन का फोन देख कर मैंने पहले तो मोहन का फोन नहीं उठाया लेकिन जब मोहन ने मुझे दो तीन बार फोन किया तो मैंने मोहन के फोन को उठाते हुए कहा हां मोहन कहिए। वह मुझे कहने लगे कि आशा तुम भी छोटी-छोटी बात पर गुस्सा हो जाया करती हो तुम मुझे बिना बताए ही अपने घर चली गई तो मैंने मोहन को कहा मोहन अब तुम्हारे दिल में मेरे लिए वह प्यार नहीं रहा और मुझे नहीं लगता कि हम दोनों आगे अब अच्छे से जिंदगी बिता पाएंगे।
मोहन ने मुझे प्यार से समझाया काफी समय बाद हम लोगों की बात अच्छे से हो पा रही थी मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं उसी पुराने मोहन से बात कर रही हूं जिससे कि मैं आज से 3 वर्ष पहले मिली थी क्योंकि मोहन पूरी तरीके से बदल चुके हैं और उनका रवैया मेरे प्रति भी अब पहले जैसा बिल्कुल नहीं था। मोहन ने मुझे कहा कि आशा देखो हमें इस बारे में मिलकर बात करनी चाहिए मैं नहीं चाहती थी कि मैं अब मोहन के पास वापस लौटूं लेकिन मोहन की जिद के आगे मुझे मोहन से मिलने के लिए मजबूर होना पड़ा।
मोहन मुझे कहने लगे कि देखो आशा मैं नहीं चाहता कि बात आगे बढ़े हम दोनों को आपस में ही इस बारे में कुछ बात करनी चाहिए ताकि हम दोनों के रिश्ते में किसी भी प्रकार की कोई खटास पैदा ना हो। मैंने मोहन से मिलने का फैसला कर लिया था और जब मैं मोहन से मिलने के लिए अपने घर के पास ही एक रेस्टोरेंट में गई तो मोहन वहां पर पहुंच चुके थे।
मोहन सीधा ही अपने ऑफिस से मुझसे मिलने के लिए आए थे मोहन मेरी तरफ देखते हुए कहने लगे कि देखो आशा मुझे नहीं पता कि तुम मेरे बारे में क्या सोच रही हो लेकिन जो बात तुमने उस दिन मुझे कहीं वह मुझे बहुत बुरी लगी और मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि तुम मेरे बारे में ऐसा सोचोगी।
मैंने मोहन से कुछ नहीं कहा लेकिन मोहन ने अपनी सफाई में मुझसे बहुत कुछ कहा और कहने लगे कि तुमने जिस लड़की के साथ मुझे देखा वह मेरी सहकर्मी है और यदि मैं अपनी सहकर्मी के साथ कहीं बैठा हुआ हूं तो क्या इसमें कुछ गलत है।
मेरे दिमाग में तो शक का बीज बड़ा हो चुका था और मोहन ने मुझे लाख सफाई दी उसके बाद मैं मोहन को मना ना कर सकी और उनके साथ जाने के लिए राजी हो गई थी। मैंने मोहन को कहा कुछ दिन मैं मायके में रखूंगी और फिर तुम मुझे लेने के लिए आ जाना हालांकि अब मेरी और मोहन के बीच में वह प्यार नहीं था जो कि पहले हम दोनों के बीच में था
परंतु मोहन से मिलकर मुझे थोड़ी बहुत संतुष्टि तो हुई थी। अगले दिन मोहन मुझे लेने के लिए आए मेरी मां के साथ जब मोहन बैठे हुए थे तो मां मोहन से पूछने लगी कि बेटा तुम दोनों के बीच सब कुछ ठीक तो चल रहा है। मोहन ने कहा हां मां जी हम लोगों के बीच में सब कुछ ठीक चल रहा है मोहन ने मां को तो पूरी तरीके से अपनी बातों से समझा लिया था
लेकिन मैं मोहन की बातों को अभी तक समझ नहीं पाई थी। मैं मोहन के साथ घर पर चली गई जब मैं घर पर पहुंची तो मोहन ने मुझसे पहले की तरह बर्ताव करना शुरू किया लेकिन अब हम दोनों के बीच वह प्यार नहीं रह गया था जो कि पहले था सब कुछ हम दोनों की जिंदगी में बदल चुका था।
मोहन अपने ऑफिस से जब भी घर लौटते तो वह मुझसे अब कम ही बात किया करते थे लेकिन हम दोनों के बीच झगड़े नहीं होते थे इस बात को लेकर मुझे थोड़ा संतुष्टि जरूर थी कि अब हम लोगों के बीच वैसे झगड़े नहीं होते जैसे कि पहले हम दोनों के बीच झगड़े होने लगे थे। मैं भी जब अपने रिश्ते के बारे में सोचती तो मुझे लगता है कि कहीं मैंने कुछ गलत तो नहीं किया कहीं इसमें मेरी ही तो गलती नहीं है मेरे मन में कई सवाल थे लेकिन उनका जवाब मेरे पास नहीं था। हम दोनों के रिश्ते अब पूरी तरीके से बदल चुके थे हालांकि हम दोनों एक दूसरे से बात जरूर किया करते लेकिन मुझे अब मोहन से वह प्यार नहीं था।
सब कुछ इतना जल्दी बदल गया मुझे कुछ पता ही नहीं चला कब इतनी जल्दी हम दोनों के रिश्ते बदल गए। पड़ोस में रहने के लिए एक परिवार आता है जब वह परिवार हमारे पड़ोस में रहने के लिए आया मेरी मुलाकात गीतिका से हुई और गीतिका ने मुझे अपने पति रमेश से मिलवाया। जब मैं रमेश से मिली तो रमेश मेरी बड़ी तारीफ किया करते।
रमेश को मेरे और मोहन के रिश्ते के बारे में पता चल चुका था मुझे नहीं मालूम था हम दोनों के बीच नाजायज रिश्ते बन जाएंगे हालांकि मैं इस बात से खुश थी। मेरा रमेश के प्रति कुछ ज्यादा ही लगाव होने लगा था रमेश भी मुझे देखते तो रमेश को भी अच्छा लगता। रमेश ने मुझे अपने घर पर बुला लिया उस वक्त गीतिका अपने ऑफिस में ही थे रमेश ने उस दिन छुट्टी ली थी। मैं रमेश के साथ बैठी हुई थी हम दोनों बात कर रहे थे लेकिन मुझे नहीं मालूम था रमेश मेरे साथ सेक्स करना चाहते हैं।
जब रमेश ने मेरी जांघ को सहलाना शुरू किया तो मुझे अच्छा लग रहा था वह मेरी जांघ को बड़े अच्छे से सहला रहे थे जैसे ही रमेश ने मेरे होंठों को चूमना शुरू किया था तो मेरा मन भी रमेश के लंड को अपने मुंह में लेने का होने लगा। काफी देर की चुम्मा चाटी के बाद रमेश के लंड को मैंने रमेश की पैंट से बाहर निकालते हुए अपने मुंह के अंदर ले लिया रमेश के लंड को मैंने अपने मुंह में लेकर बहुत देर तक चूसा रमेश का लंड पूरी तरीके से तन कर खड़ा हो चुका था वह मेरी चिकनी और मुलायम चूत के अंदर जाने के लिए तैयार था। रमेश ने मेरी चूत के अंदर अपने लंड को प्रवेश करवाया मैं चिल्लाने लगी।
मैंने रमेश को कहा आपके लंड को चूत में लेकर मुझे मजा आ रहा है रमेश का अंदर बाहर होता लंड मुझे और भी ज्यादा मजा आता। रमेश ने जिस प्रकार से मेरी चूत मारी उससे मै इतनी ज्यादा उत्तेजित हो गई कि मेरी योनि से कुछ ज्यादा ही पानी बाहर की तरफ निकलने लगा था जिस प्रकार से मेरी योनि से पानी बाहर की तरफ को निकाल रहा था उस से मै बिल्कुल भी रह ना सकी और रमेश ने भी अपने वीर्य को मेरी चूत के अंदर गिरा दिया रमेश का वीर्य मेरी चूत के अंदर गिरा।
मैंने रमेश को गले लगाते हुए कहा रमेश आज आपने मेरी इच्छा को पूरा किया और आज आपने मुझे बहुत खुश कर दिया। रमेश और मैं साथ में बैठकर काफी देर तक बात करते रहे जब मैं उसके कुछ दिनों बाद रमेश से मिलने के लिए घर पर गई तो रमेश ने अपने लंड पर तेल की मालिश करते हुए मेरी गांड के अंदर अपनी उंगली को घुसाया और मेरी गांड को रमेश ने चिकना बना लिया।
जब रमेश ने अपने मोटे लंड को मेरी गांड के अंदर प्रवेश करवाया तो मैं बहुत ज्यादा चिल्लाने लगी थी और रमेश का मोटा लंड मेरी गांड के अंदर बाहर होता तो मुझे और भी ज्यादा मजा आता। मैंने रमेश को कहा आपका लंड मेरी गांड के अंदर बाहर हो रहा है मेरे अंदर की उत्तेजना बढ़ रही है मेरी गांड के अंदर से खून बाहर की तरफ निकलने लगा।
रमेश को इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ रहा था वह अपने धक्को में लगातार तेजी ला रहे थे जिस प्रकार से उन्होंने मेरी गांड के मजे लिए उनका लंड पूरी तरीके से छिल चुका था। वह बहुत ज्यादा खुश थे मेरी गांड के मजे ले रहे थे उनका वीर्य मेरी गांड के अंदर ही गिर गया। उन्होने कपड़े से मेरी गांड को साफ किया वह मुझे कहने लगे आशा जी आप मुझसे मिलने के लिए आया किजिए। मैं रमेश से मिलने के लिए अक्सर जाती रहती थी।